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शनिवार, २८ डिसेंबर, २०१९

भयावह सपने

भयावह सपने नें
जगा दिया मुझें,

बीती हुईं घड़ियाँ,
आज भी ,
डरा देती हैं मुझें

ऐ बीती हुईं घडियों,
क्यों सताती हों मुझे ?

या फिर,
आज की इस घडी का,
एहसास दिलाती हो मुझे  ?

मैं ना अब डरूंगी तुमसे,
सिख तो दे दी है तूनें,

शुक्रिया उन,
बीती हुई घड़ियों का,
और,
वो भयावह सपनों का,
मुझे “नींद” से जगाने के लिए।

- तृप्ती
२८/१२/१९

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